Wednesday, December 20, 2017

पादादिरासन के समय ध्यान रखने वाली खास बातें और उसके लाभ

पादादिरासन
वज्रासन में बैठकर दोनों हाथों की मुठियां बांधकर बायीं मुट्ठी दाहिने बांह के जोड़ के नीचे और दाहिनी मुट्ठी बायें बांह के जोड़ के नीचे रखकर बाहों से छाती पर दबाव बनाया जाता है जिससे फेफड़ों पर कुछ इस प्रकार का दबाव बनता है कि दोनों फेफड़ों के पूरी तरह सक्रिय होने से दोनों स्वर चलने लगते हैं इस स्थिति को सुषुम्ना स्वर कहते हैं प्राणायाम की क्रियाओं से पहले पादादिरासन का अभ्यास बहुत जरूरी है
पादादिरासन के समय ध्यान रखने वाली खास बातें और उसके लाभ
आपकी नाक के नथुने दो 2 घंटे की अवधि के लिए बारी-बारी से काम करते हैं दाहिनी नाक के छेद से जब सांस आसानी से आ जा रही हो तो इसे इड़ा या  सूर्य स्वर कहते हैं ठोस भोजन को आसानी से पचा लेने वाला एवं श्रेष्ठ कार्य प्रारंभ करने का शुभ मुहूर्त यही सूर्य स्वर है
जब बायें नाक के छिद्र से सांस आसानी से आ जा रही हो तब इसे पिंगला या चंद्र स्वर कहा जाता है इसे ठंडा स्वर माना जाता है इसके चलते समय यदि आप कोई तरल पेय पीते हैं तो वह लाभकारी होता है जब एक स्वर अपनी अवधि का क्रम पूरा कर लेता है तो वह धीमा पड़ने लगते हैं तब दूसरा स्वर कार्यभार संभालने के लिए तत्पर हो जाता है इस प्रकार इन दोनों स्वरों का संधि काल ही धार्मिक लोगों के शाम की पूजा का सही समय माना जाता है रीढ़ के गुरियों के बीच से गुजरने वाले नाड़ी गुच्छ में इन स्वरों की संचालिका तीन नाड़ियाँ हैं जिन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं  पादादिरासन में पूरी तरह योग्य व्यक्ति किसी भी समय मनचाही नाड़ी को सक्रिय कर मनचाहा स्वर चला या बदल सकता है यह शिथिलीकरण का सर्वश्रेष्ठ आसन है
राह चलते चलते भी इच्छित स्वर बदल कर इच्छित स्वास्थ्य लाभ की यह एक बहुत ही बेहतर विधि है क्योंकि स्वर विज्ञान भी अनेक रोगों को दूर करने की एक विशेष पद्धति है मृत्यु का एक एक पल पहले से ही जान लेना अद्भुत योग विद्या है

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