पर्यंकासन और सुप्तवज्रासन में कोई विशेष अंतर नही होता है कुछ लोग सुप्तवज्रासन को ही पर्यंकासन कहते हैं फिर भी विशेषज्ञ इन दोनों आसन में मामूली सा अंतर बताते हैं जिनके नितंब और कमर में चर्बी ज्यादा होती है वह यह आसन काफी सहूलियत से कर सकते हैं
पर्यंकासन को करने की विधि
इस आसन में एड़ी और पंजे नितंबों के नीचे दबाकर लेटना नहीं पड़ता है बल्कि लेटते समय दोनों पंजे और एड़िया जाँघों के दाएं-बाएं सटी हुई रख सकते हैं इस मामूली से अंतर से लाभ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता मतलब सुप्तवज्रासन के सारे लाभ पर्यंकासन में मिलते हैं
पर्यंकासन के लाभ
मेरुदण्ड, पीठ की पेशियों, कमर, वस्ति प्रदेश, जाँघे और घुटनों आदि का अच्छा व्यायाम हो जाने से यह पुष्ट और स्वस्थ हो जाते हैं पेट की आंतों में जमा हुआ मल और पेट पर अत्यधिक तनाव पड़ने से टूट टूट कर टुकड़ों में बंट जाते हैं जो गर्म पानी, नींबू और नमक का घोल पीने से मल के साथ बाहर निकल जाता है इसलिए सुप्तवज्रासन पुराने कब्ज को आंतों से निकलने और पाचन शक्ति को बढ़ाने का यह एक सर्वोत्तम आसन है इस आसन से बालों में कालापन और चेहरे पर चमक बढ़ती है
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