नौकासन करने की विधि
समतल भूमि पर दरी बिछाकर उस पर पीठ के बल लेट जाइए दोनों
हाथ सिर की ओर लंबाई में फैला कर दोनों कानों से सटा लीजिए अब
दोनों हाथों के अंगूठे आपस में एक दूसरे से मिला लीजिए पैर भी आपस में सटे रहे अब धीरे-धीरे
सांस बाहर निकालते हुए दोनों कानों से सटे रखते हुए ही हाथों सिर और कमर के ऊपर
वाले पीछे के भाग को और पैरों, जांघो और नितंब को पृथ्वी से इतना ऊपर उठाइए कि
दोनों उठे हुए भाग पृथ्वी से लगभग 45 अंश का कोण बनाएं हाथों और पैरों की उंगलियों
एक बराबर ऊंचाई तक उठी हूं अब शरीर एक नाव की समान आकृति में आ जाता है इस स्थिति
में जब तक सांस को बाहर ही जब तक रोक सकते हैं रोके रहें फिर सांस लेते हुए
धीरे-धीरे शरीर को वापस नीचे लाकर आराम कीजिए इस क्रिया को 10 से 12 बार अवश्य
कीजिए सांस बाहर छोड़ने और सांस रोकने के समय को धीरे धीरे अपनी सुविधा के हिसाब से
बढाएं।
नौकासन के लाभ
- यह ह्रदय रोगों के लिए उत्तम आसन है
- रीढ के मनकों को व्यवस्थापन के साथ ही लचीला और स्वस्थ बनाता है
- पैरासिंपेथेटिक नाड़ियों पर इस आसन का अनुकूल खिंचाव पड़ने से पूरा स्नायु तंत्र सक्षम शक्तिशाली और स्वस्थ बनता है
- मानसिक स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य प्रणाली प्रभावित होकर मानवीय स्वभाव को सरल मिठी बोली वाला तथा बुद्धिमत्तापूर्ण बनाती है
- फेफड़ों के कोष्ठों पर भी इस आसन का उत्तम प्रभाव होता है जिससे प्राण शक्ति विकसित होकर श्वास, दमा और पुरानी खांसी को ठीक करता है
- फेफड़ों से होने वाले विसर्जन अच्छे तरीके से होने लगते हैं फल स्वरुप रक्त शुद्धि के साथ ही शरीर में कांति और ओज में वृद्धि होती है
- जांघों, कमर, पिंडलियों और पैरों के दर्द में आराम मिलता है कमर से पैरों तक जाने वाली साइटिका नाड़ी स्वस्थ होकर लंगड़ी रोग को दूर करता है
- पाचन और विसर्जन क्रियाओं को ठीक करता है गैस बनना भी रोकता है
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