भारत में शिक्षा के स्तर
को सुधारने के लिए आज के युवाओ को भी सरकार का साथ देना होगा जिस तरह से आज के
युवा टेक्नोलॉजी की तरफ ज्यादा भाग रहे हैं ठीक उसी तरह भारत की शिक्षा व्यवस्था
में सुधार लाने के लिए मिलकर प्रयास करना होगा भारत सरकार प्राइवेट स्कूल, कॉलेज
को जो सबसिडी देती है उसके बदले में चाहे तो उसी स्तर की उच्च शिक्षा छोटे छोटे
गांव कस्बों तक पहुंचा सकती है ठीक उसी तरह जिस तरह आज के समय में इंटरनेट के माध्यम
से कंप्यूटर पर ऑनलाइन क्लास दी जाती है ठीक उसी तरह बड़े पर्दे लगाकर प्रोजेक्टर
द्वारा उच्च स्तर की शिक्षा गांव गांव तक पहुँचाई जा सकती है।
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गांव में शहर
के जैसी शिक्षा देने वाले अध्यापक भी नही मिलेंगे इस तरह कम खर्च में ज्यादा से
ज्यादा फायदा हर एक छात्र का हो सकता है वैसे तो गांव में पढ़ाई का कुछ खास महत्व
नही होता। सरकार द्वारा गांव में चलाए गए शिक्षा अभियान से मिडडे मील और
छात्रावृति पाने के लालच में माँ बाप बच्चो को स्कूल में दाखिला तो दिलवा देते हैं
शिक्षा का उनके लिए कुछ खास महत्व नही होता बजाय सरकार द्वारा दिये गए छात्रवृत्ति और मिड
डे मील जैसी चीजों को छोड़कर। बच्चे जब मर्जी स्कूल जाते हैं और हफ्ते में एक दो
दिन छुट्टी कर लेते हैं और ऐसा करना उनके लिए कोई बड़ी बात नही है और कभी कभी
अभिभावक ही किसी न किसी काम की वजह से बच्चों को स्कूल जाने से मना कर देते हैं
गांव में पढ़ाई करके अगर कोई बड़ी सरकारी नौकरी पा जाता है तो वह उनके लिए वह जॉब
किसी आई ए एस, पी सी एस की नौकरी से कम नही होती क्योंकि वह लोग जिस तरह के माहौल
में पले बड़े रहते हैं वहां से निकल एक अच्छी सरकारी नौकरी के पद जैसे गस्टेड ऑफिसर
की रैंक तक पहुँच पाना आसमान छूने से कम नही होता अगर गांव शहर से जुड़ेगा और शहर
जैसी उच्च शिक्षा गांव में मिलेगी तो जरूर शिक्षा में सुधार होगा।
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अंग्रेजी का महत्व
शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेज़ी के बिना आपका ज्ञान अधूरा
है भले ही हिंदी हमारी मातृभाषा है लेकिन यदि आपको अंग्रेज़ी पढ़कर समझ मे नही आती
तो आपका ज्ञान अधूरा है किसी भी जॉब को ज्वाइन करने के लिए इंटरव्यू आपको अंग्रेज़ी
में देना पड़ेगा, उच्च शिक्षा चाहिए तो अंग्रेज़ी किताबे ही मिलेंगी, आधुनिक समय में
आज हर छेत्र में कंप्यूटर का प्रयोग किया जाता है जिसे सीखने के लिए अंग्रेज़ी का
ज्ञान होना अनिवार्य है अंग्रेज़ी आती है तो आप कंप्यूटर और मोबाइल आसानी से चला
सकते हैं हिंदी या अन्य किसी भाषा के सहारे इन सबका प्रयोग बड़ा मुश्किल हो जाता है।
आज उत्तर प्रदेश, बिहार
और अन्य कई ऐसे राज्य जहां अंग्रेज़ी को कोई खास महत्व नही दिया जाता और न आने की
वजह से लोग अंग्रेज़ी को बहुत मुश्किल समझते हैं और इससे दूर भागते हैं और जब अपनी
पढ़ाई पूरी करके जॉब के लिए या उच्च शिक्षा के लिए आवेदन करना चाहते हैं तब अंग्रेजी
में परफैक्ट न होने के कारण खुद को अपाहिज जैसा महसूस करते हैं और तब उन्हें
अंग्रेज़ी भाषा की वास्तविक कीमत समझ आती है उसमें उनकी गलती नही उस महौल की गलती
होती हैं अगर उन्हें भी बड़े शहरों जैसा माहौल मिलता अंग्रेज़ी शब्द सुनने को मिलते
और अंग्रेज़ी बोलना कहीं पर जरूरी होता तो बिल्कुल ऐसी जगह पर रहने वाले लोग भी
अंग्रेज़ी में एक्सपर्ट होते अंग्रेज़ी भाषा को प्राथमिकता देने का मतलब यह नही है
कि हम अपनी मातृभाषा से प्यार नही करते लेकिन अगर खुद की तरक्की चाहिए तो हमे
अंग्रेज़ी को ही प्राथमिकता देनी होगी आज ऐसे लोग जब छोटे शहरों से निकलकर बड़े
शहरों में जाते हैं तो अंग्रेज़ी ठीक से न आने के कारण और अंग्रेज़ी शब्द का सही
उच्चारण न कर पाने की वजह से बड़े शहर के लोग कभी हमारे सामने तो कभी हमारे पीठ
पीछे हमारा मज़ाक उड़ाते हैं तो हमने जो झेला और महसूस किया है वह आने वाली पीढ़ियों
को वही विरासत क्यों दे और मिलकर एक नए भारत का निर्माण करे।
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उत्तर प्रदेश बिहार और
अन्य राज्यों के छात्रों का अंग्रेज़ी मे परफेक्ट न होने का कारण अभिभावकों की
अज्ञानता और और उनकी आर्थिक स्थिति भी होती है क्योंकि अंग्रेज़ी माध्यम चलाने वाले
स्कूल काफी मोटी रकम वसूलते हैं अंग्रेज़ी माध्यम की ट्यूशन कोचिंग और किताबे
कापियां भी हिंदी माध्यम के मुकाबले काफी महंगी होती है इसलिए मध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चों को हिंदी माध्यम से पढ़ाने
पर मजबूर होता है जबकि आर्थिक रूप से मजबूत परिवार ऐसे राज्यों में रहकर भी अपने
बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पाते है और उच्च स्तर की शिक्षा और उच्च स्तर की
नौकरी में आर्थिक रूप से मजबूत परिवारों के बच्चे ज्यादा आगे रहते हैं माध्यम
वर्गीय परिवार के मुकाबले।
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प्रोफेशनल डिग्री का ट्रेंड
शिक्षा का ट्रेंड जिस
दौर में जिस डिग्री का ट्रेंड ज्यादा चल रहा होता है माँ बाप उसी डिग्री को बिना
जाने बुझे दूसरों के बच्चो को देखकर और बिना अपने बच्चों की रूचि जाने बिना अपने
बच्चों को उसी डिग्री की ओर धकेल देते हैं। आजकल तो शहरों में एक बिज़नेस बन गया है
प्रोफेशनल डिग्री के लिए नए इंस्टीट्यूट और विश्वविद्यालयों का जैसे
मेला लगा हुआ है सभी को मोटी फीस चाहिए लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर सुधर नही रहा
है माँ बाप दूसरे बच्चों को देखकर अपने बच्चो को प्रोफेशनल कोर्स तो करवा देते हैं
लेकिन फिर भी उनके बच्चे पूर्णतया सक्षम नही बन पाते और उस ली गयी प्रोफेशनल डिग्री
के हिसाब से उतनी अच्छी नौकरी नही पाते और बहुत बार लोग काम तो कुछ और करते हैं और
डिग्री कोई और ले रखी होती है उनके अभिभावकों के द्वारा किया गया इन्वेस्टमेंट अच्छी
नौकरी के लिए काम नहीं आता।
इसका एक कारण ऐसे
इंस्टीट्यूट हैं जो काम फीस में प्रोफेशनल कोर्स तो करवाते हैं लेकिन छात्रों को
उस हिसाब से सक्षम नही बना पाते कुछ अभिभावक ऐसे भी होते हैं जो बड़े इंस्टिट्यूट
के हिसाब से बडी फीस तो भर नही पाते लेकिन कम फीस में प्रोफेशनल कोर्स करवाने का
मौका देख पीछे नही हटते क्योंकि उन्हें ऐसे विश्वविद्यालयों की असलियत पता नही
होती उन अभिभवकों को यह पता नही होता कि वह अपने आधे जीवन की मेहनत की कमाई जिस
जगह डाल रहे हैं वहां सिर्फ पैसे डूबने वाले हैं उनके बच्चों का भविष्य नही बनने
वाला है। इन सबको रोकने के लिए ऐसी टीम का गठन करना चाहिए जो इस तरह के
इंस्टिट्यूट पर नजर रखे और अगर छात्रों को उस उच्च स्तर की शिक्षा नही दे पाए तो
बन्द करवा देना चाहिए जिससे यह व्यवसाय जो देश का भविष्य बिगाड़ता है उसे बंद
किया जा सके और लोगों का पैसा और देश का भविष्य दोनों बचे।
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मध्यम वर्गीय परिवार की
आर्थिक दशा
मध्यम वर्गीय परिवार
अपनी आधी जिंदगी स्कूल कॉलेज की मोटी फीस के नीचे दबा रहता है स्कूल कॉलेज का यह
व्यवसाय तो जोरों से चलता है लेकिन जिंदगी भर अपनी मेहनत की कमाई स्कूल कॉलेज को
देकर भी सभी परिवार के बच्चे अच्छा रोजगार नही पाते फीस देने में तो सभी अभिभावक
पैसा खर्च करते हैं लेकिन उसके
बदले
में अपने बच्चों को लिए जिस सुन्दर भविष्य की उम्मीद करते हैं वह उन्हें नही मिलता।
स्कूल और कॉलेज के द्वारा मनचाही फीस वसूलने पर रोक लगानी चाहिए इसकी भी एक सीमा
निर्धारित होनी चाहिए जिससे माध्यम वर्गीय परिवार को थोड़ी राहत मिले। आज के समय
में परिवार में सबसे बड़ा ख़र्चा पढ़ाई का होता है और यह बोझ जिंदगी भर खत्म नही होता
हर अभिभावक चाहता है कि उसका बच्चा अच्छी शिक्षा ले जिसके लिए वह मोटी से मोटी फीस
देने को तैयार रहता है और मोटी फीस का यह बोझ बोझ होकर भी बोझ नही लगता है और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए
लोग घूस लेना भी शुरू कर देते हैं क्योंकि ज्यादा फीस भरते भरते घर की आर्थिक स्थिति
भी कमजोर होती है, बच्चे जैसे जैसे बड़े होते हैं उनकी पढ़ाई का खर्चा बढ़ता है इसलिए
हर आदमी ज्यादा से ज्यादा कमाना चाहता है जिससे वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे
सके और घर की आर्थिक स्थिति भी मजबूत बनी रहे। कुछ लोग इनसब से निपटने के लिए लोग घूस लेने और तरह तरह के गलत काम शुरू कर देते हैं अगर इन सब चीजों में सुधार हो पाए तो देश में घूसखोरी की समस्या से निपटा जा सकेगा इसलिए कुछ ऐसा कदम उठाया जाना चाहिए जिससे देश का भविष्य उज्जवल हो सके।
इस आर्टिकल का उद्देश्य
किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नही बल्कि लोगों में जागरूकता फैलाना और अच्छे
समाज की स्थापना करना है।
By
Sandeep Kumar Sunder
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